कुछ दिन पहले कयास लग रहे थे कि पार्टी ने उन्हें 'किनारे' कर दिया है, लेकिन योगी आदित्यनाथ नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद पार्टी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक के तौर पर दिखाई दे रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर, धोलना, लोनी और दूसरी कई जगहों पर उनकी रैलियां हो रही हैं
जहां योगी हिन्दुओं के पलायन और कश्मीर जैसे हालात पैदा होने की बात कहकर आक्रामक हो रहे हैं। ये सब कैसे? जबकि कहा तो ये जा रहा था कि 'उनके समर्थकों के उन्हें बार-बार मुख्यमंत्री के बतौर प्रोजेक्ट करने को लेकर मोदी-शाह उनसे नाराज हैं'।
योगी को पार्टी की भारी-भरकम चुनाव संचालन समिति से बाहर रखे जाने और पार्टी कार्यकारिणी बैठक में बोलने का मौका भी नहीं दिए जाने की चर्चाओं के बीच इन बातों को और हवा मिली।
हिन्दू युवा वाहिनी की भाजपा ने की उपेक्षा
इसके बाद में उन्हें अचानक से दिल्ली से अमित शाह का बुलावा आया और इन खबरों के बीच कि उनकी सरपरस्ती में चलने वाली हिन्दू युवा वाहिनी ने भाजपा में उनकी कथित उपेक्षा के खिलाफ 26 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने का ऐलान कर दिया है।
योगी साजिश की इन बातों को विरोधियों की हवाबाजी बताते हैं और उनका कहना है कि हिन्दू युवा वाहिनी राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन भर है लिहाजा वो चुनाव लड़ ही नहीं सकती। और उनकी अपनी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है।
लेकिन उनकी राजनीतिक शैली पर नजर रखने वाले कहते हैं कि ये योगी का रणनीतिक चातुर्य ही है जिसने उन्हें एक पीठ के महंत से मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर स्थापित किया है। जिस गोरक्षापीठ का वे नेतृत्व करते हैं उसका संसदीय राजनीति से बहुत पुराना ताल्लुक रहा है।
योगी शुरू से ही गोरखपुर के आकर्मक नेता रहे
1967 में इस पीठ के तत्कालीन प्रमुख महंत दिग्विजयनाथ हिन्दू महासभा के टिकट पर सांसद बने थे। उनके उत्तराधिकारी और रामजन्मभूमि आन्दोलन के अग्रणी नेता महंत अवैद्यनाथ 1962, 1967, 1974 व 1977 में मानीराम विधानसभा सीट से विधायक चुने गए और फिर 1970, 1989, 1991 और 1996 में गोरखपुर से सांसद रहे।
उनके उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ 1998 में गोरखपुर से 12वीं लोकसभा का चुनाव जीतकर 26 साल की उम्र में पहली बार सांसद बने। 1998 से वे लगातार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 2014 में वे पांचवी बार सांसद बने। पिछले 28 सालों से गोरखपुर के सांसद का पता गोरखनाथ मंदिर ही रहा है।
योगी की छवि आमतौर पर एक उग्र हिंदूवादी नेता की रही है। 2007 में गोरखपुर में साम्प्रदायिक झड़प की कुछ घटनाओं के बाद तत्कालीन सपा सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा था जिसपर प्रदेश के कुछ हिस्सों में उग्र प्रतिक्रिया भी हुई थी। पिछले दिनों उनके भाषण का एक वीडियो वायरल हो गया था जिसमें वे कहते सुने गए कि अगर कोई मुस्लिम एक हिन्दू लड़की को ले जाएगा तो बदले में हम सौ मुस्लिम लड़कियों को ले जाएंगे।
जनता के बल पर पार्टी के खिलाफ
योगी ने इसे साजिश करार दिया था और फोरेंसिक जाँच की मांग की थी। प्रदेश के 27 जिलों में फैले हिन्दू युवा वाहिनी जैसे अपने संगठन को लेकर चर्चा में रहने वाले योगी आदित्यनाथ का जनाधार बड़ा है और उन गिने चुने नेताओं में गिने जाते हैं जो हर चुनाव में अपना वोट प्रतिशत बढ़ा लेते हैं।
कहा जाता है कि जनता के बीच हासिल इस ताकत के बल पर वो कई बार सार्वजनिक रूप से अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े नजर आते हैं। बीएसपी के बाबू सिंह कुशवाहा को बीजेपी में शामिल करने का कुछ ऐसा खुला विरोध उन्होंने किया कि पार्टी को अपने कदम वापस लेने पड़े।
2002 विधानसभा चुनाव में हिंदू महासभा ने भाजपा के उम्मीदवार को खिलाफ राधामोहन अग्रवाल को खड़ा किया और वो जीत भी गए। अग्रवाल योगी के करीबी बताए जाते हैं।