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...आखि़र हम क्यों नहीं सांसद ?

CityWeb News
Tuesday, 12 March 2019 08:18 PM
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सहारनपुर की महिलाएं उठा रहीं हैं गम्भीर सवाल
अर्से से आज तक कर रहीं नुमाइंदगी का इंतजार गौरी वर्मा सहारनपुर। लोकसभा की बिसात सज चुकी है। तमाम चेहरे जल्द से जल्द चुनाव मैदान में उतरनेे को बेकरार हैं। ऐसे में हर किसी की निगाह चुनावी सफर के सबसेे पहले पड़ाव यानी नामांकन प्रक्रिया पर टिकी है। काबिल ए गौर पहलू यह है कि, इस बार भी चुनाव में महिलाओं को टिकट थमाने के प्रति किसी भी राजनीतिक दल में कोई दिलचस्पी नज़र नहीं आ रही। इसे लेकर सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या इस बार भी सहारनपुर सीट से किसी महिला को सांसद बनने का मौका नहीं मिलेगा ? वेस्ट यूपी की सहारनपुर लोकसभा सीट सियासी नजरिए से काफी अहम है। यहां आबादी के लिहाज से बात करें तो, कुल पांच विधानसभा सीट आाती हैं। इनमें बेहट में 165069 महिला मतदाता हैं। जबकि, नकुड़ में 159302, सहारनपुर नगर में सर्वाधिक 189052, सहारनपुर देेहात में 151926, देवबंद में 153735 और रामपुर मनिहारान में सबसे कम 140611 महिला मतदाता हैं। इसके अलावा, जिले में ही आने वाली कैराना लोकसभा की गंगोह विधानसभा सीट पर 171172 और नकुड़ सीट पर 159302 महिला मतदाता हैं। इस तरह, यदि इन कुल सात विधानसभा सीटों पर पंजीकृत महिला मतदाताओं की संख्या जोड़ी जाए तो यह आंकड़ा 1130867 महिला वोटरों तक पहुंच जाता है। साफ है कि, इतनी बड़ी संख्या में महिला मतदाता होने के बावजूद सहारनपुर लोकसभा सीट पर महिलाओं की नुमाइंदगी नहीं होना अपने आप में हैरत की बात है। इस सीट पर सबसे पहला चुनाव 1952 में हुआ था, तब से 1977 तक यहां कांग्रेस का कब्जा रहा। 1977 में इमरजेंसी लगने के बाद स्थिति बदली और यहां 1996 तक लगातार या तो जनता दल अथवा जनता पार्टी जीतती रही। हालांकि, अपवादस्वरूप 1984 में कांग्रेस ने वापसी की थी। 1996 के बाद यह सीट दो बार भाजपा और दो बार बसपा के खाते में जा चुकी है। जबकि, एक बार समाजवादी पार्टी ने भी यहां जीत दर्ज की। 2014 से यह सीट भाजपा के पास बनी है। सबसे ज्यादा चैंकाने वाला पहलू यह है कि 1992 से आज तक इतना लंबा वक्त बीत चुका है लेकिन, किसी भी छोटे या बड़े राजनीतिक दल ने यहां महिलाओं की नुमाइंदगी बढ़़ाने के बारे में नहीं सोचा और इस बार भी हालात में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद तक नजर आ रही। इस बारे में, सिटी वेब से विशेष वार्ता में दिल्ली पब्लिक स्कूल की शिक्षिका श्रीमती प्रतिमा वत्स बताती हैं कि, महिलाओं को किसी भी स्तर पर वह स्थान नहीं मिल पा रही है, जिसकी वे वास्तविक हकदार हैं। यदि महिलाओं को सही मायने में अपना हक चाहिए तो उन्हें सबसे पहले खुद आवाज बुलंद करनी होगी। परिधान व्यवसायी श्रीमती दीप्ति खुल्लर कहती हैं कि, महिलाओं को वाकई आज भी अपने हक के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। इसके लिए, सभी राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं, जो वादे तो तमाम करते हैैं लेकिन, दर हकीकत कभी निभाते नहीं। समाजसेेवी नीना धींगड़ा कहती हैं कि, महिलाओं को लोकसभा चुनाव में क्या, किसी भी स्तर पर चुनावी भागीदारी नहीं दी जाती। इसी कारण उनके मुद्दों पर भी कभी कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता। यदि इस बार भी लोकसभा चुनाव में महिला को टिकट नहीं मिलता तो इससे साबित हो जाएगा कि, सभी दल महिलाओं के हक में केवल कोरे दावे करते हैं। ब्यूटीशियन पूनम बाली कहती हैं कि, सहारनपुर लोकसभा सीट पर महिलाओं को हर सूरत में टिकट मिलना चाहिए। राजनीतिक दलों की उदासीनता अर्से से बरकरार है। इसे तोड़ने के लिए हर स्तर आवाज उठनी चाहिए। गुरुकुल स्कूल की प्रधानाचार्य श्रीमती नविका भारती भी महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने की प्रबल हिमायती हैं। उन्होंने कहा कि, पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को एक-एक कदम बढ़ाने के लिए गहरा संघर्ष करना पड़ रहा है। इनके अलावा, गृहिणी शिवानी खेड़ा, मेेनका चैधरी, पूूजा अग्रवाल, डीपीएस की शिक्षिका सतेंद्र कौर मैनी, शिक्षिका किरण मदान एवं शिक्षिका चारु अनेजा भी महिलाओं की सियासी सहभागिता बढ़ाने पर जोर देती हैं।

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