जितेंद्र मेहरा।
तीन माह के लालन-पालन के बाद उन्हें भेज दिया जाएगा बालगृह
सहारनपुर। अब लावारिस नवजात शिशुओं के पालन-पोषण के लिए पुलिस और स्वास्थ्य विभाग को किसी एनजीओ की सहायता नहीं लेनी पड़ेगी। ऐसे बच्चों के लिए जनपद के सभी स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में पालना इनलीगल चाइल्ड कार्यक्रम चलाया जाएगा। इसके लिए एक शिशु स्वागत केंद्र भी बनाया जाएगा। तीन माह तक नवजात शिशुओं की देखभाल और लालन-पालन यहीं किया जाएगा। इसके बाद बालगृह में भेज दिया जाएगा। यहां से कागजी कार्यवाही कर बच्चों को गोद लिया जा सकेगा। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग में शासन से अनुमति पत्र आ चुका है। इन केंद्रों को किसी ऐसे स्थान पर बनाया जाएगा, जहां कोई भी महिला, पुरुष या दंपति जो अपनी पहचान सार्वजनिक न करना चाहता हो, वह नवजात को पालना में सुरक्षित रखकर लौट सके। अस्पताल प्रशासन जगह की तलाश कर रहा है।
दो कर्मियों की होगी ड्यूटी
पालना यानि नवजात शिशु केंद्र पर कर्मचारियों की ड्यूटी रोटेशन पर लगाई जाएगी। इसके लिए प्रभारी भी नियुक्त किया जाएगा। प्रभारी का दायित्व होगा कि वह प्रत्येक दिन पालना की गतिविधियों पर निगरानी रखे। केंद्र पर आठ-आठ घंटे की ड्यूटी लगाए जाने के निर्देश दिए गए हैं। जिसकी ड्यूटी लगाई जाएगी, उसका फोन नंबर और नाम भी बोर्ड पर अंकित किए जाने के निर्देश हैं।
अस्पताल प्रशासन की बढ़ेगी जिम्मेदारी
इस योजना से स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी बढ़ेगी। क्योंकि आने वाले ऐसे बच्चों की कागजी कार्यवाही पूरी करनी होगी।
घंटी बजते ही पहुंचेंगे कर्मी
जिला महिला अस्पताल में 24 घंटे चहल-पहल रहती है। पालना कार्यक्रम के तहत सुनसान जगह पर पालना लगाना है। ताकि लावारिस बच्चों को पालना में रखने में आसानी हो। इसके साथ ही एक घंटी भी लगाई जाएगी। यह बटन दबाने के दो मिनट बाद बजेगी और ड्यूटी पर तैनात कर्मचारी तुरंत वहां पहुंचेगा।
‘शासन से बजट आते ही पालना प्रोग्राम संचालित कराया जाएगा। जो भी दिक्कतें पेश आएंगी, उनका हर संभव निराकरण होगा। डा. अनिता जोशी, प्रमुख अधीक्षिका, जिला महिला अस्पताल, सहारनपुर।