अरविन्द सिसौदिया
नानौता। दियों से चली आ रही कोथली की पंरपरा का सावन का महीना आते ही हर किसी विवाहिता को सबसे ज्यादा इंतजार होता है। जो उसके मायके से कोथली (सिंदारा) के रूप में होता है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार जहां शादी के बाद लडकी का पहला सावन अपने मायके पक्ष में बिताना होता है। इस दौरान हरियाली तीज पर लडकी की कोथली ससुराल पक्ष द्वारा भेजी जाती है। तो वहीं उसके बाद मायके पक्ष द्वारा लडकी की कोथली ससुराल में ही भेजी जाती है। इसीलिए सावन शुरू होते ही हरियाली तीज पर विवाहिता को अपने मायके से आने वाली कोथली का बेसब्री से इंतजार रहता है। इस बार हरियाली तीज का त्यौहार 3 अगस्त को है। सावन माह में हरियाली तीज के दौरान चाहे बस, कार हो या बाइक जैसे हर वाहन पर कोथली वालो का बोलबाला होता है। तीज से एक दिन पूर्व या तीज उत्सव पर यौवन चढ जाता है। कोथली में घेवर, कपडे और घरेलू मिठाइंयो का बोलबाला रहता है। तो वहीं सहेलियो संग झूला भी झूला जाता है।
सिमटता जा रहा है दायरा -
65 से अधिक सावन देख चुकी संतोष देवी व वृद्वा रामरति ने बताया कि लडकी के पहले सावन की कोथली को लेकर घरों में कई दिन पूर्व तैयारियां शुरू कर दी जाती थी। लेकिन आज के दौर में रेडीमेड सारा सामान बाजार में उपलब्ध होता है। वहीं नीतू राणा व मधु सिंह की मानें तो आज के आधुनिकता के दौर में पुरानी परंपराओं का दायरा सिमटता जा रहा है। पहले श्रद्धा व भावना का मेल मिलाप होता था। लेकिन अब उसका स्थान दिखावे ने ले लिया है। पहले कोथली में आने वाले सामान को पूरे मुहल्ले में बांटा जाता था। लेकिन अब घर के सदस्यों तक ही सीमित रह गया है।