लखनऊ ।
प्रियंका गांधी का गंगा किनारे 140 किमी लंबा सफर बुधवार को भले ही खत्म हो गया लेकिन वह कांग्रेस के लिए एक नए सिलसिले की शुरुआत कर गईं।
गंगा यात्रा के जरिये वह यूपी में विपक्ष को न केवल सटीक संदेश देने में कामयाब रहीं बल्कि अपने सियासी समीकरण भी बखूबी साधे।
प्रियंका का ट्रंप कार्ड पूरे दौरे में न केवल पूरी रंगत में रहा, बल्कि उमड़ी भीड़ और कांग्रेसियों का जोश भाजपा व सपा-बसपा के खेमे में खलबली मचाने के लिए काफी कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगा।
पूरे दौरे में प्रियंका ने मौजूदा दौर की निजता का हनन करने वाली टिका-टिप्पणी की बयानबाजी पर भी कठोर प्रहार भी किया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला जरूर बोला लेकिन पूरी मर्यादा के साथ...।
प्रयागराज से भदोही होते हुए वाराणसी के दौरे में वह जिससे भी मिलीं एक अलग आत्मीय छाप छोड़ी। बच्चियों से मिलना, गले लगाना, फोटो खिंचवाना...। इंदिरा गांधी के करीबी पुराने पुरोहितों के मुलाकात या फिर मज़ार के सज्जादानशीन से मिलकर दादी इंदिरा गांधी के पुराने रिश्ते ताज़ा करना...।
कांग्रेस ने दरअसल प्रियंका का दौरा पूरे सियासी गणित को ध्यान में रखकर तय किया। जिस रूट पर वह जलमार्ग से निकलीं, उस इलाके में बसने वाली जातियां कभी कांग्रेस का वोटबैंक रहीं हैं। चाहे निषाद, बिंद, लोधी हों या फिर दलित...। वाराणसी में अपना दल (कृष्णा गुट ) की पल्लवी पटेल को सााथ लेकर मंच पर रहना भी कुर्मी जाति के बहुलता वाले इलाके में संदेश देने के लिए काफी रहा। प्रियंका इन जातियों से खुद को जोड़ने का प्रयास करती दिखीं।