पटना : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनकल्याणकारी योजनाओं और राज्य की ऊंची विकास दर की काफी तारीफ की. कहा कि इन योजनाओं की वजह से राज्य में आश्चर्यजनक बदलाव आये हैं और इनका बेहतरीन असर सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में दिखा है. साथ ही उन्होंने बिहार के समक्ष मौजूद चुनौतियों को गिनाते हुए इनसे िनबटने के लिए बांग्लादेश के विकास मॉडल को अपनाने का सुझाव भी दिया. वह शुक्रवार को आद्री के रजत जयंती समारोह के मौके पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. प्रणब मुखर्जी ने कहा कि बिहार की विकास दर 10.50 फीसदी से ज्यादा होने के बाद भी यह पिछड़ा हुआ है यह सोचनेवाली बात है. बिहार की तुलना में झारखंड समेत कई दूसरे राज्यों की विकास दर कम रही है. उन्होंने कहा कि बिहार को मौजूदा समस्याओं का समाधान निकालने के लिए प्रयास करने की जरूरत है. खनिज संपदा, गंगा की उपजाऊ जमीन, मेहनतकश लोग, विद्वान, बड़े चिंतक और विचारकों के होते हुए भी बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में शामिल नहीं हो पा रहा है. बिहार और झारखंड दोनों चौराहे पर हैं, कौन-सा रास्ता अपनाये. विकास की शुरुआत के बाद लोगों की अपेक्षाएं काफी बढ़ी हैं. नये राजनीतिक वर्ग के बेहतरीन प्रयास और राजनीतिक गतिशीलता के अच्छे परिणाम दिखने लगे हैं.
आजादी पहले और बाद भी हुई उपेक्षा
उन्होंने कहा कि यह भी समझने की जरूरत है कि अंगरेजी हुकूमत में तो इस प्रदेश का काफी शोषण हुआ ही, आजाद भारत की कई नीतियों के कारण भी काफी नुकसान हुआ. इस इलाके में 1794 में लागू की गयी जमीन की स्थायी बंदोबस्ती से जुड़े कानून विकास में बड़ी बाधा बन कर उभरे. इसके बाद भाड़ा समानीकरण समेत ऐसी अन्य नीतियों के कारण बिहार समेत इस पूरे इलाके को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा. इतिहास से एक बेहतरीन सबक सीखने की जरूरत है, विकास के लिए सही सामाजिक और राजनीतिक गतिशीलता जरूरी है.
हर बार बिहार आकर मिलती है नयी प्रेरणा
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बिहार से अपने जुड़ाव को दर्शाते हुए कहा कि हर बार यहां आने से एक नयी प्रेरणा मिलती है. यह स्थान सिर्फ इसलिए प्रेरणादायक नहीं है कि यहां चरणबद्ध तरीके से सभ्यताओं का विकास हुआ या गौतम बुद्ध और महावीर जैसे महान संत पैदा हुए, जिन्होंने समस्त जगत को मानवता और मोक्ष की शिक्षा प्रदान की, बल्कि महान शासक चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक द्वारा आधुनिक राज्य की अवधारणा देना भी इसे प्रेरणादायक बनाता है.
सम्राट अशोक के सर्वशक्तिमान विजेता से एक महान बौद्ध प्रचारक के रूप में परिवर्तित होने की यशगाथा भी बिहार में समाहित है. राष्ट्रपति ने कहा कि आदिकाल में ही बिहार में शिक्षा के दो प्रमुख केंद्र नालंदा और विक्रमशिला हुआ करते थे. ये दोनों कई सदियों तक शिक्षण साधना के अनुपम स्थल के साथ-साथ ग्रीक, परसियन, चाइनीज और भारतीय संस्कृतियों के मिलन स्थल भी बने रहे. बंगाल से सन 1912 में बिहार अलग हुआ. इसके बाद वर्ष 2000 में बिहार और झारखंड के बीच बंटवारा हुआ, लेकिन दोनों प्रदेशों की गतिशीलता एक समान है. दोनों राज्यों की समेकित विचारधारा रही है. सामाजिक-आर्थिक रूपांतरण की झलक सिर्फ सांस्कृतिक स्तर पर ही नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी महसूस होती है.
बेहतर रिसर्च की जरूरत
विकास के मॉडल को तैयार करने के लिए सामाजिक आर्थिक शोध संस्थान होने चाहिए. बिहार जैसे राज्यों में ऐसे संस्थानों का गठन होना चाहिए. आद्री जो रिसर्च करता है, उसका फायदा सीधे तौर पर आम लोगों को हो. सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए ऐसे शोध होने चाहिए, जिनमें जनकल्याणकारी नीतियों का खाका तैयार हो. इनके जरिये उपर्युक्त नीतियां तैयार हो सकें. इसके बाद तमाम मौजूदा संसाधनों का उपयोग बेहतर रणनीति के तहत की जाये, ताकि राज्य का हर क्षेत्र में विकास हो सके.
बांग्लादेश का मॉडल अपनाने की जरूरत
राष्ट्रपति ने कहा कि सिर्फ औद्योगिकीकरण से ही विकास की अवधारणा तय हो, यह जरूरी नहीं है. इसके लिए बांग्लादेश के विकास मॉडल को अपनाने पर विचार करने की जरूरत है. 1971 में बांग्लादेश बना. इसके बाद उसने अपनी सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि के आधार पर विकास का मॉडल तैयार किया. अपनी जनसंख्या का इस्तेमाल उत्पादकता बढ़ाने में किया. विकास के इस मॉडल से बिहार और झारखंड जैसे राज्य काफी कुछ सीख सकते हैं.बिहार को अपनी जनसंख्या का उपयोग बेहतर संसाधन के तौर पर करना चाहिए. लोगों को ज्यादा-से-ज्यादा कौशल के अवसर प्रदान करते हुए इन्हें प्रशिक्षित कामगार के रूप में तैयार करें. शिक्षा का मकसद सिर्फ आर्थिक स्थिति बेहतर करना नहीं हो, बल्कि यह लोगों को सशक्त बनाने का जरिया बने.
िबहार की तारीफ
बिहार की विकास दर 10.50% से अधिक, झारखंड समेत कई दूसरे राज्य हैं पीछे
नये राजनीतिक वर्ग के बेहतरीन प्रयास
राजनीतिक गतिशीलता के बेहतर परिणाम
चुनौतियां भी िगनायीं
औपनिवेशिक विरासत
जाति आधारित राजनीति
पारिस्थितिकी से जुड़े मुद्दे
सामाजिक न्याय की मांग
सब-नेशनल आयडेंटिटी
मजदूरों का पलायन