एसएल कश्यप।
सहारनपुर। मोहर्रम की तीसरी तारीख को नगर के विभिन्न इमाम बारगाहो मे देर रात हुई मजालिस मे मुस्लिम धार्मिक विद्वानो ने करबला के शहीदं हज़रत मुस्लिम के दो छोटे व कमसीन बच्चे शहीद हज़रत औन व शहीद हज़रत मुहम्मद की शाहदत का फलसफा ब्यान किया गया। मजलिसो में सबसे पहले खुव्वाजा हसन मौहम्मद, डाॅ0 अमीर अब्बास, खुवाजा रईस अब्बास, आसिफ अल्वी, एस0एम0हुसैन जैदी एडवोकेट अथर अली जैदी ने मरसिया पढ़ी। इमाम बारगाह सामानियान,मौहल्ला कायस्थान में मौलाना रिज़वान मारूफी, बडी इमाम बारगाह,जाफर नवाज में मौलाना ज़मीर जाफरी तथा छोटी इमाम बारगाह में मौलाना तंजीम हुसैन ने खिताब फरमाया। मजालिस मे बताया गया कि यज़ीद हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से बैअत (समर्थन) लेना चाहता था वह चाहता था कि यदि रसूल अकरम का नवासा मेरी बैअत (समर्थन) कर देगा तो मे तमाम मुस्लमानो का खलीफा (सरदार) बनकर मुसलमानो मे वह सारे काम जायज़ कर दूगा जो इस्लाम मे नाजायज़ है और उन बातो पर हज़रत इमाम हुसैन की मोहर लग जाएगी और तमाम मुसलमान उस पर अमल करने लगेगे और इस तरह इसलाम की शक्ल बदल जाएगी और उसकी हकूमत भी कायम रहेगी यही उसका असली मकसद था यज़ीद की हज़रत इमाम हुसैन ने इस लिए बैअत नही की कि उनको नाना रसूले खुदा के दीन (धर्म) की हिफाज़त करनी थी और इसके लिए हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी कुरबानी 10 मोहर्रम को पेश कर रसूले खुदा के दीन को बचा लिया नही तो इसलाम मे शराब, ज़िनाखोरी (बलात्कार), सूदखोरी, व सारे नाजायज़ काम जायज़ होते इस लिए हमे हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत को कभी भुलना नही चाहिए। हम अज़ादारी व हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का ग़म रस्मो रिवाज की वजह से नही मनाते यह एक तहरीक है। जो मकसदे हुसैनियत को कामयाब बनाने एव करबला के शहीदो को पुरसा देने के लिए करते है। हजरत इमाम हुसैन का काफला दो मोहर्रम को जब करबला पहुचा तो आपने सब से पहले करबला की ज़मीन को बनी असद से खरीदा और मर्दो से वसीयत की जब हम लोग शहीद हो जाए तो हमारी कब्रगाह यही बनाना और मेरे ज़ायरिन को करबला मे 3 रोज़ तक मेहमान बना कर रखना। फिर वहा की औरतो से वसीयत की थी कि यदि हमे दफन करने मर्द न आ सके तो आप हमे दफन करना। उसके बाद बच्चो से वसीयत की थी कि यदि मर्द या औरते हमे दफन न करने आ सके तो तुम हमे दफन करना। मजालिस के आखिर मे अन्जुमने अकबरिया व अन्जुमने इमामिया ने नौहा खानी व मातम किया।