अरविन्द सिसौदिया
नानौता। सावन का महीना शुरू होते ही घेवर बनाने का काम शुरू हो चुका है। विशेष तौर पर पश्चिमी यूपी में घेवर ज्यादा प्रसिद्व है। इस समय पूरे जिले भर में हर छोटी बडी हलवाई की दुकान पर घेवर बनाने का काम हो रहा है। घेवर बनाने काम कृष्ण जन्माष्टमी तक चलता है। घेवर का प्रचलन विशेष तौर पर तीज के त्यौहार पर सुहागिन स्त्रियों के सिंदारे दिये जाने के रूप में चलता है। घेवर बाजारों में दो प्रकार का बेचा जाता है। एक सादा तो दूसरा मलाईदार घेवर।
बारिश के मौसम में घेवर का अलग है फ्लेवर -
घेवर बनाने वाले हलवाईयों की मानें तो जैसे-जैसे बरसात का मौसम होता है वैसे वैसे ही घेवर का स्वाद बलदता जाता है। क्यांकि खुष्क मौसम में घेवर सूख जाता है जबकि नमी वाले मौसम में घेवर एक दम मलाई जैसा हो जाता है। वैसे भी हलवाई आमतौर पर ताजा घेवर बेचने की बजाए एक-दो दिन पूर्व बनाए घेवर को बेचते है। जिससे घेवर पूरी तरह नरम हो जाता है।
150 से 350 रूपये किलो तक बिकता है घेवर -
कस्बों में घेवर का रेट सादा 150 रूपये से व मलाईवाला 350 रूपये प्रति किलो तक बिक रहा है। जबकि सहारनपुर शहर में दुकानों पर यह 450 से 700 रूपए तक बेचा जा रहा है।
देशी घी व मावे के घेवर की मांग है ज्यादा -
वैसे तो कई प्रकार के घेवर बनाये जाते है। लेकिन आज के दौर में देशी घी व मावे के घेवर की दुकानों पर सबसे ज्यादा मांग है। हांलाकि देशी घी का घेवर बहुत कम दुकानों पर मिलता है जबकि मावे का घेवर सभी दुकानों पर आसानी से मिल जाता है।
सफाई का नहीं रखा जाता ध्यान -
सावन के दिनों में जितनी मांग घेवर की होती है उतनी किसी ओर मिठाई की नहीं होती है। लेकिन दुकानों पर इनके बनाने में सफाई को दरकिनार कर दिया जाता है। विशेष बात यह है कि कभी कोई चिकित्सक या फूड सेफ्टी अधिकारी किसी हलवाई के यहां जाकर जांच तक नहीं करता है। कारीगर खुले सिर व लंबे नाखून व गंदे हाथों से मिठाई बनाकर लोगों के स्वास्थय से खिलवाड कर रहे है। यदि ग्राहक मिठाईयों को बनता देख ले तो शायद ही खाने को मन कर पायें।
कोई सैंपल नहीं लिया गया -
फूड सेफ्टी अधिकारी नगर में आकर झांकते भी नहीं है। पिछले दो वर्षो में शायद ही कोई सैंपल मिठाई का लिया गया हो। जिससे पता चलता है कि दुकानदारों के साथ अधिकारी कैसे सांठ-गांठ रखते है। एक मिठाई दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यदि कभी कोई बडा अधिकारी छापेमारी करने आ भी जाता है तो उसकी जानकारी पहले से दुकानदारों के पास पंहुच जाती है। क्योंकि हम भी तो अधिकारी को खुश रखते है।