बैसाखी एक राष्ट्रीय त्योहार है। जिसे देश के अलग-अलग जगह पर सभी धर्मों के लोग अपने-अपने तरीके से मनाते हैं।
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार बैसाखी पर्व हर साल 13 अप्रैल को ही मनाया जाता है। वैसे कभी-कभी 12-13 साल में यह त्योहार 14 तारीख को भी मनाया जाता है। रंग-रंगीला ये पर्व बैसाखी अप्रैल के महाने में 13 या 14 तारीख को जब सूर्य मेष राशि में पहुंचता है, तब ये त्योहार मनाया जाता है। लेकिन इस साल ये 14 अप्रैल को मनाया जाएगा।
बैसाखी का ये पर्व पूरे भारत में सभी जगह मनाया जाता है। वैसे इसे खेती का पर्व भी माना जाता है। किसान इसे पूरे हर्ष-उल्लास के साथ मनाते हैं। बैसाखी खासतौर पर कृषि पर्व है। पंजाब की भूमि से जब रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है तब यह त्योहार मनाया जाता है। इस किसानों के इस त्योहार को आध्यात्मिक पर्व के रूप में भी काफी मान्यता मिली है।
पंजाब में ही नहीं बल्कि उत्तर भारत के बाकी प्रांतों में भी बैसाखी का ये रंग-रंगीला त्योहार पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। सौर नववर्ष या मेष संक्रांति के कारण पर्वतीय अंचल में इस दिन मेले लगते हैं। लोग पूरी श्रद्धा से देवी मां की पूजा करते हैं तथा उत्तर-पूर्वी सीमा के असम प्रदेश में भी इस दिन बिहू का पर्व मनाया जाता है।
उत्तर भारत में खासकर पंजाब बैसाखी के त्योहार को पूरे जोर-शोर से मनाते हैं। ढोल-नगाड़ों की थाप पर युवक-युवतियां प्रकृति के इस त्योहार का स्वागत करते हुए गीत गाते हैं एक-दूसरे को बधाइयां देकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं और झूम-झूमकर नाच उठते हैं। अतः बैसाखी आकर पंजाब के युवा वर्ग को याद दिलाती है। साथ ही वह याद दिलाती है उस भाईचारे की जहां माता अपने दस गुरुओं के ऋण को उतारने के लिए अपने पुत्र को गुरु के चरणों में समर्पित करके सिख बनाती थी।
वैसे बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा युवा पूर्णिमा में होने के कारण इस महीने को बैसाखी कहते हैं। इस तरह वैशाख मास के प्रथम दिन को बैसाखी कहा गया और पर्व के रूप में स्वीकार किया गया। बैसाखी के दिन ही सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है अतः इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं।
सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में साल 1699 में खालसा पंथ की नींव रखी थी। इसका ‘खालसा’ खालिस शब्द से बना है। इस पंथ के द्वारा गुरु गोबिन्द सिंह ने लोगों को धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव छोड़कर आपसी संबंधों में महत्व देने की सीख सिखाई थी।
इस दिन सिख गुरुद्वारों में खासतौर पर खासा त्योहार देखने को मिलता है। खेत में खड़ी फसल पर हर्षोल्लास प्रकट किया जाता है। बैसाखी पर्व के दिन पूरे उत्तर भारत की पवित्र नदियों में स्नान करने अच्छा माना जाता है। इतना ही नहीं इस दिन प्रातःकाल नदी में स्नान करना हमारा धर्म हैं।
दरअसल बैसाखी एक लोक त्योहार है जिसमें फसल पकने के बाद उसके कटने की तैयारी का उल्लास साफ तौर पर दिखाई देता है। यह पर्व पूरी दुनिया को भारत के करीब लाता है।