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...खाली ताम्रपत्र से पेट नहीं भरता साहब !

CityWeb News
Monday, 11 March 2019 08:50 PM
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दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर स्वतंत्रता सेनानी के वंशज
सरकार से नहीं मिलती कोई आर्थिक सहायता, हो चुके निराश
गौरी वर्मा
सहारनपुर। जिन आंखों ने देश को सही मायने में, सोने की चिड़िया बनाने का सपना देखा था, आज उन्ही के वंशज दाने-दाने को मोहताज हो चले हैं। जी हां, ये जिक्र है आजादी के मतवालों के परिजनों की उस बदनसीबी का, जिसका दर्द सहारनपुर के ओमप्रकाश और उनकी बहन सुशीला अर्से से सह रहे हैं। यही वजह है कि, आज सब तरफ से निराश होकर दोनों भाई-बहन ने तय कर लिया है कि वे सरकारों की ओर से अपने स्वर्गीय पिता कोे मिले ताम्रपत्र वापस कर देंगे ताकि, पूरे समाज में यह कड़वी हकीकत पहुंच सके कि, इस आजाद देश में आज भी अमर बलिदानियों के आश्रित कितने अभाव में जीने को मजबूर हैं ?
सहारनपुर की ब्रह्रमपुरी कालोनी में बसे ओमप्रकाश दरअसल स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय चंद्रबली शर्मा एवं स्वर्गीय अरुंधति शर्मा के पुत्र हैं। वह और उनकी बड़ी बहन सुशीला शर्मा लंबे वक्त से सरकारी मदद का इंतजार कर रहे हैं। आलम यह है कि 1972 से आज तक तकरीबन 47 साल की अवधि में तमाम प्रयासों के बावजूद स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय शर्मा के इन दोनों आश्रितों को पेंशन तक नसीब नहीं हो पा रही। हालांकि, अनेक राजनीतिक व गैर राजनीतिक संगठनों से उन्हें कई सम्मान अवश्य मिलते रहे हंै। लेकिन, चिंतनीय पहलू यह है कि, आर्थिक मोर्चे पर उनके हाथ आज भी खाली हैं।
उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय चंद्रबली शर्मा के देशसेवा से जुड़े उनके जज्बे के लिए तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने इस परिवार को ताम्रपत्र भेंट किया था जबकि, यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने शर्मा परिवार को सहायतास्वरूप एक गैस कनेक्शन प्रदान किया था। यह ताम्रपत्र आज भी ओमप्रकाश व सुशीला ने बड़े सम्मान के साथ अपने घर में संजो रखा है। उन्हें न जाने कब सेे यह आस है कि, उनके पिता को इतना सम्मान देने वाली सरकार कभी उनकी भी सुध लेगी लेकिन इसके ठीक उलट, सरकारी उपेक्षा टूटने का नाम नहीं ले रही। इसी के मदद्ेनज़र अब ओमप्रकाश और सुशीला ने ठान लिया हैं कि अपनी उपेक्षा के प्रतिकारस्वरूप भी सरकार की ओर से दिए गए ताम्रपत्र वापिस कर देंगे। ‘सिटी वेब‘ से विशेष वार्ता में ओमप्रकाश ने बताया कि, हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को उनके पिता जैसे न जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर लम्बे-चैड़े भाषण देकर सरकारी मशीनरी अपने कर्तव्य की इतिश्री कर देती है। जबकि बाकी दिनों में कोई उनका हाल भी पूछने नहीं आता। इसीलिए, अब वे सरकार को तामपत्र सहित अपने सभी सरकारी सम्मान वापस करके ये सन्देश देना चाहते हैं कि इस आजाद देश में आज भी अमर बलिदानयो के सपूत किस तरह उपेक्षा ,गुलामी और तिरस्कार का कड़वा घूंट पीने को मजबूर हैं ?

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