समाजवादी पार्टी में सुलह की तमाम कोशिशें नाकाम हो जाने के बाद अब मुलायम और अखिलेश की पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ेंगी। इसकी तैयारियां शुरू हो गई हैं।
पार्टी के नाम और निशान पर स्थिति साफ होने के बाद अखिलेश यादव पहले और दूसरे चरण में मतदान वाले क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के लिए निकलेंगे।
मुलायम सिंह यादव ने अक्तूबर 1992 में चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी से बगावत करके लखनऊ में समाजवादी पार्टी का गठन किया था। रजत जयंती वर्ष में सपा दोफाड़ हो गई। स्थापना के 25वें साल में पिता-पुत्र की राहें अलग-अलग हो गईं हैं।
हालांकि मुलायम ने बुधवार को यह कहते हुए पार्टी के बंटवारे की नैतिक जिम्मेदारी से खुद को अलग कर लिया कि उनके पास जो कुछ था, अखिलेश को सौंप दिया, अब मेरे पास बचा क्या है? मुझे कार्यकर्ताओं और जनता पर भरोसा है।
हालांकि, यह कहते हुए आखिरी वक्त तक सुलह और बातचीत की गुंजाइश कायम रखी है कि हम किसी भी कीमत पर पार्टी को एकजुट रखना चाहते हैं। वैसे, दोनों खेमों की ओर से जिस तरह का रुख अपनाया जा रहा है, उससे साफ है कि चुनाव मैदान में वे अलग-अलग दल और चुनाव चिह्न के साथ मैदान में उतरेंगे।
न तो उनमें राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर सहमति बन पाई है और न ही प्रत्याशी चयन को लेकर। रामगोपाल और अमर सिंह को लेकर दोनों खेमों के एतराज कायम है।
हारी हुई सीटों के दावेदार बदलेंगे पाला
अखिलेश ने यदि गठबंधन करके चुनाव लड़ा तो हारी हुई अधिकतर सीटें कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल या दूसरे दलों के हिस्से में आएंगी। ऐसी स्थिति में सपा से इन सीटों पर चुनाव लड़ने के दावेदारों में बेचैनी बढ़ेगी।
टिकट की उम्मीद में अभी अखिलेश की जय बोलने वाले कई दावेदार मुलायम खेमे में जा सकते हैं। सीटिंग सीटों पर अखिलेश ने ज्यादातर विधायकों को फिर से मैदान में उतारा है, लेकिन 2012 में हारी हुई सीटों पर उनके सीमित उम्मीदवार रहेंगे।