सपा-कांग्रेस गठजोड़ सामने आने के बाद भाजपा और बसपा की बदली रणनीति पर हो रहा काम भी नजर आने लगा है। बसपा ने जहां अल्पसंख्यकों को गठबंधन की ओर जाने से रोकने के लिए माफिया मुख्तार अंसारी की पार्टी का बसपा में विलय कर मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण की चाल चली।
वहीं, भाजपा ने लोकसभा चुनाव की तरह हिंदू ध्रुवीकरण की सियासत पर कदम बढ़ाते हुए पश्चिम से पलायन और पशु रक्षा के मुद्दे पर जोर देना शुरू कर दिया है।
इसकी झलक भाजपा के चुनाव घोषणापत्र और पार्टी के हिंदूवादी चेहरे महंत आदित्यनाथ की पश्चिम यूपी की सभाओं से मिलने लगी है। लेकिन विश्लेषक सपा-कांग्रेस गठबंधन को भी ध्रुवीकरण की बुनियाद पर रख कर ही देख रहे हैं।
ध्रुवीकरण पर केंद्रित हो गई है यूपी की सियासत
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्री प्रो. आरपी पाठक यूपी के इलेक्शन को पूरी तरह से ध्रुवीकरण पर केंद्रित मानते हैं। वह कहते हैं कि विकास के मुद्दे पीछे छूट गए हैं। तीनों कोणों से ध्रुवीकरण की सियासत तेज हो गई है। सपा व कांग्रेस गठबंधन का आधार मुस्लिम मतों का बिखराव रोकना है। अखिलेश अकेले ऐसा नहीं कर सकते थे।
अपराधी छवि के अतीक अहमद, विजय मिश्रा और मुख्तार अंसारी जैसों को ठुकराने के बाद उन्हें इस वोट बैंक के काफी हिस्से के नुकसान का अंदेशा था। अखिलेश को उम्मीद होगी कि कांग्रेस के साथ आने से नुकसान हुए मतों की भरपाई भी हो जाएगी और धर्मनिरपेक्ष मतों का बिखराव भी नहीं होगा।
मायावती यह गेम को समझती नजर आ रही हैं। इसीलिए 97 मुस्लिमों को टिकट देने के बावजूद मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल का विलय कर 100 टिकट पूरा करने का दांव चला।
बसपा चाह रही है कि पूरा मुस्लिम वोट बैंक उनके साथ हो जाए। भाजपा पलायन और गोहत्या जैसे मुद्दों को उठा रही है। इस तरह चुनाव के तीनों मुख्य ध्रुव ध्रुवीकरण की सियासत में लग गए हैं। यदि मुस्लिम ध्रुवीकरण हुआ तो हिंदू ध्रुवीकरण भी होगा।