संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के बीच 40 साल पुरानी सिंधु जल संधि संघर्ष के संकल्प का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। 1990 के दशक की शुरुआत से ही बेसिन राज्यों में पानी की कमी है और तानव की वजह से समझौते को लाया गया, जो अपने अस्तित्व में कमजोर प्रतीत होता है।
विकास एडवोकेट पाकिस्तान शीर्षक से संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की रिपोर्ट में यह अंदेशा जताया गया है कि समझौता दो मसलों पर विफल रह सकती है। पहला सूखा पड़ने के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारा क्योंकि सामान्य वर्षों की अपेक्षा ऐसे में पानी लगभग आधा रह जाता है। दूसरा, पाकिस्तान में चिनाब नदी में भंडारण का संचयी प्रभाव।
मौजूदा समय में झेलम और नीलम नदियों पर बने वुलर बैराज और किशनगंगा परियोजना में भी ऐसी समस्या है। इसके कारण रबी की फसल के दौरान पानी के भंडारण का संकट हो जाता है क्योंकि खरीफ के मौसम की तुलना में यह लगभग पांचवां हिस्सा ही रह जाता है। रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले 40 वर्षों से सिंधु जल समझौता संघर्ष के समाधान का उत्कृष्ट उदाहरण साबित हो रहा है।
1990 के दशक की शुरुआत से दोनों देशों के बीच पानी को लेेकर तनाव बढ़ा है, जिससे संधि जारी रहने को लेकर संकट बढ़ गया है। वास्तव में, इसका अस्तित्व कमजोर दिखता है। यद्यपि समझौते से अलग होने का कोई नियम नहीं है।