फुटबॉल से पल रहा है 15000 परिवारों का पेट, कोरोना काल में भी नहीं काम की कमी
उत्तर प्रदेश, मेरठ के सिसोला गांव में एक अलग ही नजारा दिखता है। सूई से खेलती उंगलियों का चमत्कार, कैसे देखते ही देखते चमड़े के 32 टुकड़ों से फुटबॉल बना देती है। सिसोला गांव के 15 सौ परिवार फुटबॉल बनाने का काम करते हैं। जिस कारण इस गांव को 'खेलन गांव' के नाम से भी जाना जाता है।
गांव के ज्यादातर परिवार फुटबॉल बनाने के छोटे बड़े काम से जुड़े हुए हैं और इनकी एक फुटबॉल सिलने की आमदनी मात्र 15 रुपये है। ऐसे में केवल पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं और बच्चे भी फुटबॉल सिलाई का काम करते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन लॉकडाउन के दौरान भी यहां किसी को काम की कोई कमी नहीं आई।
जब यहां के ग्राम निवासियों से बात की गई तो एक निवासी शेर खान ने बताया कि करीब 4 दशक पहले तक यह गांव भी दूसरे गांव की तरह ही था। उसी दौरान यहां एक ग्रामीण धनीराम मेरठ से फुटबॉल सीना सीकर आए और यहां काम शुरू किया और धीरे-धीरे कमाई का एक बेहतर जरिया देखकर कई और ग्रामीण भी इस काम से जुड़ गए। गांव के 1785 परिवारों में से 1503 परिवार फुटबॉल के छोटे बड़े काम से जुड़े हुए हैं। शहर से कच्चा माल लाकर यहां उस की कटिंग, सिलाई, फिनिशिंग का काम होता है। आपको बता दें सिसौला में तैयार फुटबॉल आज देश के बड़े बाजारों में बिकते हैं जो कि अपने फिनिशिंग और मजबूत धागे के लिए मशहूर है।
गांव वासियों का कहना है कि आज फुटबॉल की वजह से ही हमारा गांव आत्मनिर्भर हो चुका है। यही वजह है कि लॉकडाउन में भी जब दूसरी जगहों पर लोग रोजी-रोटी से परेशान थे। तब खेलन गांव में सभी के पास काम था और सभी ने मिलजुल कर उस संकट से पार पाया। अनलॉक के बाद भी गांव में कोई भी एक भी दिन खाली नहीं बैठा।