शैतान बच्चे और उद्दंड बच्चे के बीच एक बारीक-सी रेखा होती है। आपका शैतान बच्चा इस रेखा को पार न करे, इसके लिए आपका सतर्क रहना जरूरी है
आठ साल का अनय शुरू से ही बहुत चंचल बच्चा था और हमेशा किसी न किसी शरारत में लगा रहता था। बड़े होने के साथ-साथ उसकी यही शरारतें, बदमाशी में तब्दील होने लगीं। उसे दूसरों पर रौब जमाना अच्छा लगता और धीरे-धीरे यह उसकी आदत बन गयी। शुरुआत में उसके माता-पिता ने बचपना समझकर नजरअंदाज करने की कोशिश की, लेकिन जब आये दिन स्कूल और पड़ोसियों से अनय की शिकायतें मिलने लगीं तो पेरेंट्स चिंतित होने लगे। क्या अपने बच्चे को लेकर आपके साथ भी कुछ ऐसा घटा है?
दरअसल, गुस्सा आना मानव का एक स्वाभाविक भाव है। लेकिन कुछ बच्चे अपने इस भाव पर बिल्कुल काबू नहीं रख पाते और जरा-जरा सी बात पर अपनी नाराजगी बहुत कठोर ढंग से जाहिर करने लगते हैं। ऐसे बच्चे अपने से छोटे या अपने से कमजोर बच्चों या लोगों को चोट पहुंचाकर या उन्हें गलत शब्द बोलकर खुशी महसूस करने लगते हैं। पर बच्चे के इस व्यवहार का अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि वह बच्चा अच्छा नहीं है। हो सकता है कि वह बच्चा किसी तरह की मानसिक परेशानी से जूझ रहा हो और आपके सामने सही ढंग से अपनी बात नहीं रख पा रहा हो। ऐसी स्थिति में वह अपनी सारी झल्लाहट गुस्से के रूप में दूसरों पर निकालने लगता है। बच्चे को सजा देने या सारा दोष उस पर थोप देने से पहले यह बहुत जरूरी है कि उसके ऐसे व्यवहार के संभावित कारणों के बारे में पता लगाया जाए।
यूं तो हर माता-पिता के लिए अपने सारे बच्चे बराबर होते हैं, लेकिन कभी-कभी अनजाने में किसी एक बच्चे के प्रति उनका प्यार कुछ ज्यादा ही उमड़ने लगता है। बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं और जब उन्हें लगता है कि उन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा, तो वे चिड़चिड़े हो जाते हैं और अपना सारा गुस्सा घर में तोड़-फोड़ कर या छोटे भाई-बहनों के साथ मार-पिटाई करके निकालने लगते हैं।
यदि घर पर हमेशा तनाव का माहौल रहता है, तो उससे बच्चे के अंदर एक प्रकार की चिड़चिड़ाहट-सी पैदा होने लगती है। जिन घरों में हमेशा छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं, उन घरों में बच्चे खुद को उपेक्षित महसूस करने लगते हैं। नतीजतन, ऐसे घरों के बच्चे खुद को मोबाइल या टीवी में व्यस्त कर लेते हैं। और कई शोध इस बात को साबित कर चुके हैं कि जरूरत से ज्यादा टीवी और इंटरनेट का इस्तेमाल बच्चों को उग्र बना देता है।
अनुशासन एक बहुत अच्छी चीज है, लेकिन जो माता-पिता अपने बच्चों के साथ हमेशा ही कड़ाई से पेश आते हैं, वे अपने बच्चों के कभी दोस्त नहीं बन पाते। जरूरत से ज्यादा सख्ती अभिभावक को बच्चे से दूर कर देती है। ऐसे बच्चे अपनी कोई समस्या पेरेंट्स के साथ बांटना पसंद नहीं करते, बल्कि वे जान-बूझकर अपने पेरेंट्स के सामने बेहद शांत रहने की कोशिश करने लगते हैं। ऐसे बच्चे अकसर घर से बाहर निकलते ही दूसरे बच्चों पर अपना रौब दिखाने लगते हैं।
बच्चे माता-पिता को अपने आदर्श के रूप में देखते हैं और वे वही सब सीखते हैं, जो आपको करते देखते हैं। फर्ज कीजिये, आप उसे दूसरों का सम्मान करने और प्यार करने की शिक्षा हमेशा देती हैं, लेकिन खुद हमेशा दूसरों से लड़ने के मूड में रहती हैं। तो बहुत हद तक संभव है कि वह भी आपको देख-देखकर हमेशा झल्लाहट से भरा रहने लगेगा और बात-बात पर दूसरों से लड़ाई-झगड़ा करने लगेगा।
किसी भी कारण से यदि बच्चा खुद को उपेक्षित महसूस करने लगता है तो उसके अंदर एक प्रकार का डर और अकेलापन भर जाता है, जिस पर काबू पाने के लिए वह दूसरों को सताने लगता है। बच्चे को हमेशा यह विश्वास दिलाएं कि हर परेशानी में आप उसके साथ हैं और आपके साथ वह पूरी तरह से सुरक्षित है।
यदि बार-बार प्यार से समझाने पर भी बच्चा अपने व्यवहार को बदल नहीं पा रहा, तो उसके साथ थोड़ी सख्ती से पेश आएं और उसे बताएं कि उसका यह व्यवहार आपको तकलीफ पहुंचा रहा है। कभी-कभी बातचीत द्वारा भी किसी समस्या का हल नहीं निकल पाता। ऐसे में पेशेवर बाल मनोचिकित्सक या काउंसलर से मदद लेने में कतई न हिचकें। वो बातचीत के माध्यम से बच्चे की समस्या की जड़ को पहचानने में आपकी मदद करेंगे। याद रखिये कि आपके बच्चे को कोई मानसिक बीमारी नहीं है। वह सिर्फ अपने व्यवहार से उग्र है, जिसे सामान्य बनाने में विशेषज्ञ आपकी बहुत अच्छे से मदद कर सकते हैं।