नई दिल्ली (9 नवंबर): अगर आप नौकरी करते हैं तो यह खबर आपके होश उड़ाने के लिए काफी है। क्योंकि कंपनियां लागत घटाने और ऑटोमेशन जैसी नई तकनीकों को अपनाने के कारण आने वाले समय में पर्मानेंट जॉब्स धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी।
केलीओसीजी की ओर से की गई वर्कफोर्स एजिलिटी बैरोमिटर स्टडी में सामने आया है कि अभी ही भारत में 56 प्रतिशत कंपनियों में 20 प्रतिशत वर्कफोर्स काम की समय-सीमा के आधार पर नियुक्त है। 71 प्रतिशत कंपनियां इस तरह की नियुक्तियां अगले दो साल में बढ़ने की उम्मीद जता रही हैं जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे ज्यादा होंगी। आईटी, शेयर्ड सर्विस सेंटर्स और स्टार्टअप्स में सबसे ज्यादा नियुक्तियां काम की समय-सीमा के आधार पर ही हो रही हैं। इस आधार पर नियुक्त लोगों में फ्रीलांसर्स, टेंपररी स्टाफ, सर्विस प्रवाइडर्स, अलॉमनी, कंसल्टैंट्स और ऑनलाइन टैलंट कम्यूनिटीज आदि शामिल हैं।
इस मॉडल को गिग इकॉनमी का नाम दिया गया है, क्योंकि कंपनियां स्थाई की जगह अस्थाई तौर पर कर्मचारियों की नियुक्तियां कर रही हैं। इस गिग इकॉनमी में तेज-तर्रार लोग मांग और पसंद के मुताबिक अलग-अलग प्रॉजेक्ट्स और संगठनों में घूमते-फिरते डिमांड-सप्लाइ मॉडल पर काम करते हैं।
जैसे-जैसे काम के मिजाज बदल रहे हैं, वैसे-वैसे भर्तियों के तरीके भी बदल रहे हैं। अगले दस सालों में आपके जॉब पाने और काम करने, दोनों के तरीके बहुत बदल जाएंगे। नई सदी में बालिग हो रहे लोग नए युग के चलन को पसंद तो कर रहे हैं, लेकिन इससे उनके रोजगार की अनिश्चितता भी बढ़ रही है।